भारत में बहुत से ऐसे तथ्य मिलते है। जिस से हमे पता चलता है। की सम्वत की शुरुआत आज से लगभग 2000 साल हुई थी। इस से पहले हम समय की गणना के लिए शासन वर्ष का इस्तेमाल किया जाता रहा है।लेकिन बाद में हम शक सम्वत और विक्रम सम्वत (shak samvat or vikram samvat )का प्रयोग करने लगे।
शक सम्वत और विक्रम सम्वत (shak samvat or vikram samvat )
विक्रम संवत (vikram samvat)की तरह यह भारत में शक संवत shak samvat) की शुरुआत हुई जो कि बहुत ही प्रसिद्ध सम्वत माना जाता है. शक संवत की शुरुआत पहली शताब्दी अर्थात 78 ईसा पूर्व में हुई थी. विक्रम संवत की तरह इसकी भी कोई संपूर्ण जानकारी नहीं है. किसको किसने चलाया था लेकिन अधिकांश विद्वान यह मानते हैं. कि भारत में शक संवत को प्रचलित करने वाले उज्जैन के शको का क्षेत्रीय थे।लेकिन कुछ स्रोतों से पता चलता है। कि शक संवत की शुरुआत भारत में नहीं बल्कि इसकी शुरुआत इस 123 वर्ष में मध्य एशिया के शको की बैक्ट्रिया पर विजय प्राप्त करने की खुशी में की गई थी.शैको के नेता एजस इसको जला दिया था। ऐसी कारण से इसे प्रारंभ एजस सम्वत भी कहा जाता था. बाद में जब तक शक भारत में आते हैं। शक क्षत्रप चस्टान द्वारा इसे भारत में प्रचलित किया जाता है. लेकिन इस में ध्यान में रखने की खास बात यह है। कि भारत में नए ढंग से प्रारंभ हुआ और विक्रम संवत के 135 में वर्ष जिसे भारत में शक संवत की शुरुआत हुई भारत में शक सम्वत का पहला वर्ष माना जाता है.
लेकिन भारत में प्रचलित होने से पहले शक संवत की गणना यूनानी पंचांग के हिसाब से की जाती थी. लेकिन भारत में प्रचलित होने के बाद इसे शक संवत किसकी विक्रम संवत के अनुसार चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को होना स्वीकार किया गया. इसी प्रकार भारत में शक संवत की शुरुआत विक्रम संवत के वर्ष के अनुरूप ही होती है. शक संवत के प्रसंग में यह बात याद रखना योग्य है कि भारत के उत्तरी और दक्षिणी दोनों भागों में शक संवत चैत्र महीने के शुल्क पक्ष की प्रतिपदा अर्थात एकदम से ही प्रारंभ होता है।
How Many Samvat In India Hindi
शक संवत ( shak samvat) को राजकीय संवत के रूप में कब-कब मान्यता मिलेगी
भारत में प्रचार में आने वाला शक संवत धीरे-धीरे भारत में लोकप्रिय होने लगा और इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद शक संवत को राजकीय संवत के रूप में मान्यता प्रदान की गई. सन 1952 में भारत सरकार ने डॉ मेघनाद सहा की अध्यक्षता में भारत के अलग-अलग पंचांग में तथा वर्षो एंव तिथि गणना की एकरूपता लाने के लिए एक आयोग का गठन किया गया था और इस आयोग ने शक संवत को राष्ट्रीय संवत स्वीकार किया। आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए विक्रम संवत के वर्ष 2014 अर्थात सन 1957 से शक संवत को राष्ट्रीय पंचांग कैलेंडर में स्थान दिया गया राजकीय कार्यों में विक्रम संवत और सन के साथ शक संवत का भी प्रयोग होने लगा.
गुप्त सम्वत कब शुरू हुआ
भारत में विक्रम संवत तथा शक संवत की तरह गुप्त सम्वत का भी प्रचलन शुरू हुआ भारतवर्ष में काल गणना और उसके वर्ष का वर्ष की गणना के लगभग 30 संवाद हमें दिखाई देते हैं। इसका कोई साक्ष्यों का न मिलने से हमें हम यह अनुमान लगा सकते हैं. कि भारत में इसका प्रचार वह प्रयोग में आने वाला गुप्त संवत का प्रारंभ कब और किसने किया लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार बताते हैं। कि भारतवर्ष में गुप्त संवत नाम से प्रचलित होने वाला संवाद सबसे पहले लिछवी सम्वत के गणतंत्र के समाप्त होने तथा गणतंत्र के स्थान पर राजतंत् की शुरुआत से माना जाता है। भारत में प्रचलित विक्रम संवत के 377 में वर्ष अर्थात इस सन 320 के चैत्र महीने के शुल्क पक्ष के प्रतिपदा के दिन से हुई है. लेकिन बाद में प्राचीन भारत के गुप्त सम्वत के शासकों ने इस लिछवी संवत को अपना लिया और अपने शिलालेखों सिक्कों मुद्राओं आदि में इसका प्रयोग करना आरंभ कर दिया। भारत में गुप्त वंश के शासकों के शिलालेखों से इस समय का प्रयोग किया जाने के हमें साक्ष्य मिलते से विक्रम संवत 607 अर्थात सन 550 की समय अवधि तक गुप्त वंश संवत का पूरे उत्तर भारत में प्रचार प्रसार हुआ और फिर यह संवत भारत में अधिक लोकप्रिय नहीं हो सका और उसका प्रचार भी नहीं रहा।
इसके अलावा भी भारत में कुछ अन्य संवत भी हमें दिखाई देते हैं. जो कि अलग-अलग धर्मों तथा भारत में आने वाले अलग अलग जैसे यूनानी ,पारसियों , तुर्कों ,मुगलों के आने के साथ ही विदेशी वर्ष गणना की प्रणालियां का प्रचार-प्रसार भी हुआ और इस प्रक्रिया में उनके अपने संवत जैसे यूनानी संवत, फारसी संवत ,रोमन संवत् ,सत्यकेतु संवत, तुर्की संवत, हिजी संवत भारत में प्रचलन हुआ. इनमें से हिजी संवत को छोड़कर बाकी किसी भी संवत के आलावा भारत में प्रचार नहीं हुआ.इसका प्रचार भी यह इस्लाम को मानने वाले तुर्क एवं मुगल शासकों को लंबे समय तक शासन करने के कारण ही हुआ।