हेलो दोस्तों जैसा कि आपको पता है भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक लंबे समय तक शासन किया है इस शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी पर ब्रिटिश संसद के द्वारा समय-समय पर कुछ अधिनियम बनाएं गए थे जिससे कि ईस्ट इंडिया कंपनी के ऊपर थोड़ा बहुत नियंत्रण किया जा सके इसी लेख में हम रेगुलेटिंग एक्ट 1773( regulating act 1773)के बारे में अध्ययन करने वाले हैं
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी 31 दिसंबर 1600 मुख्य रूप से जॉन वोट और जॉर्ज वाइट द्वारा स्थापित की गई ।उन्होंने ब्रिटिश की महारानी एलिजाबेथ प्रथम द्वारा 15 वर्ष का अधिकार के तहत यूरोप के देशों में व्यापार करने का एकाधिकार प्राप्त कर लिया था इसका हेड क्वार्टर लंदन में था।
ढांचा – स्वामी मंडल के लिए 500 पाउंड के स्थान पर 1000 पौंड खरीद कर कोई भी स्वामी मंडल में शामिल हो सकते थे, स्वामी मंडल की संख्या 1400 थी।
1400 स्वामी मंडल के सदस्य द्वारा =चुनते थे court of directors या निदेशक मंडल के 24 सदस्य को =कोर्ट ऑफ डायरेक्टर फिर फैक्ट्री के कर्मचारियों पर कंट्रोल करते थे।
भारत में अंग्रेजों के द्वारा पहली फैक्ट्री सूरत मे 1608 में स्थापित की गई थी, जो की बंटूस ( इंडोनेशिया )की एक शाखा थी।
रेगुलेटिंग एक्ट 1773( regulating act 1773)
सन 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापारिक हैसियत से आई थी लेकिन 1765 तक आते-आते यह प्रशासनिक स्थिति में बदलने लगे ।
अगर हम बात करें तब तात्कालिक कारण की तो हम जानते हैं कि 1757 का प्लासी का युद्ध और 1764 के बक्सर युद्ध में अंग्रेजो की जीत होने के साथ ही भारत के क्षेत्रीय प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर मिल गया था। लेकिन प्रशासनिक अधिकार पाने के साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के अंदर भ्रष्टाचार की भावना को भी उजागर कर दिया था इसी कंपनी के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार को नियंत्रण करने के लिए ब्रिटिश संसद के द्वारा एक एक्ट पारित किया गया और इसी एक्ट को हम रेग्युलेटिंग एक्ट कहां जाता है। जो कि लोड नॉर्थ या फ्रेडरिक नॉर्थ के द्वारा पेश किया गया था।
21 जून 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
इस एक्ट की अन्य विशेषताएं
इस एक्ट के द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के राजनीतिक और राजस्व संबंधी अधिकार ब्रिटिश संसद के नियंत्रण के आधीन ला दिए गए अर्थात निदेशक मंडल के द्वारा इन 2 मामलों में गवर्नर जनरल से प्राप्त रिपोर्ट को संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत करना होता था। जिसकी स्वीकृति के पश्चात् ही यह फैसले लागू होते थे यही नहीं प्रेसिडेंसी के गवर्नर अन्य ब्रिटिश प्रांत के गवर्नर या गवर्नर जनरल या लेफ्टिनेंट गवर्नर commander-in-chief तथा परिषद के सदस्यों की नियुक्ति संबंधी निदेशक मंडल के फैसलों को तभी विधि मान्यता प्राप्त होती थी जब ब्रिटिश संसद उसे स्वीकृति दे दे पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के क्रियाकलाप को संसद की निगरानी में लाया गया और यहीं से भारत में धीमी और कमजोर ही सही कानून (विधि)के शासन की शुरुआत हुई ।
सिविल नागरिक और सैन्य मामलों में भी सपरिषद गवर्नर जनरल के फैसलों की प्रतिलिपि संसद में प्रस्तुत करनी होती थी पुनः इस में निम्नलिखित प्रदान किए गए,
1. बंगाल के गवर्नर का दर्जा बढ़ाकर गवर्नर जनरल कर दिया गया तथा मुंबई व मद्रास प्रेसिडेंसी पर उसे अधीक्षण व पर्यवेक्षण का अधिकार दे दिया गया अर्थात अब इन प्रेसिडेंसी की सरकारे राजस्व, राजनीति, प्रशासन और स्थानीय शासकों से समझौते ,संधि आदि मामले में पहले गवर्नर जनरल से अनुमति प्राप्त करती थी , तत्पश्चात उसे लागू करते थे (इस अधिनियम से पहले प्रेसीडेंसी की सरकारें सीधे निदेशक मंडल के प्रति उत्तरदायी थी।)
2. इस अधिनियम के द्वारा ही भारत के पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बनाया गया
3. इस अधिनियम के पूर्व भारत में ब्रिटिश कार्यपालिका के ऊपर किसी ने न्यायपालिका का कोई नियंत्रण नहीं था और इस दोष को दूर करने के लिए कोलकाता में एक सुप्रीम कोर्ट गठित करने का फैसला किया गया। जिसमें मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे इसके प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा एम्पे थे अन्य तीन न्यायाधीश चैंबर्स ,लिमेंस्टर और हाइट।
कोलकाता के सुप्रीम कोर्ट को निम्नलिखित क्षेत्रों का अधिकार सौंपा गए थे ।
1 दीवानी, फौजदारी
2 नौसेना
3धार्मिक मामले
4 सिविल सेवा में सुधार
बंगाल बिहार उड़ीसा में भू राजस्व राजस्व की वसूली के लिए जो सुपरवाइजर नियुक्त हुए थे उन्हें कलेक्टर नाम दे दिया गया और अब इन्हें मजिस्ट्रेट का अधिकार भी दे दिया गया था ।
इस एक्ट के दोष
इस एक्ट के तीन प्रमुख दोष हैं
1. सपरिषद गवर्नर जनरल आपस में मतभेद के कारण प्राय कोई निर्णय नहीं ले पाता था ।
2. प्रेसीडेंसी और सह परिषद गवर्नर के बीच अधिकारिता पूरी तरह से स्पष्ट नहीं थी जिसे दोनों के बीच प्राय संघर्ष की स्थिति बन जाती थी ।
3. कोलकाता के सर्वोच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालयों के बीच अधिकारिता स्पष्ट नहीं थी
एक्ट ऑफ सेटलमेंट 1781
रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को पूरा करने के लिए ब्रिटिश संसद के द्वारा एक और एक्ट लाया गया इस एक्ट को बंदोबस्त कानून या एक्ट ऑफ सेटलमेंट कहां जाता है
विशेषताएं
1. 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट के बाद बंगाल में द्वैध शासन लागू हुआ जिससे कंपनी के कर्मचारियों पर भी दोहरा प्रभाव पड़ा अर्थात ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों पर गवर्नर जनरल की परिषद व सर्वोच्च न्यायालय का नियंत्रण में आ गए थे।एक्ट सेटेलमेंट के द्वारा गवर्नर जनरल तथा काउंसिल को सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से अलग कर दिया गया.
2. इस एक्ट के द्वारा ही सुप्रीम कोर्ट में हिंदुओं के लिए हिंदू कानूनों द्वारा और मुसलमानों के लिए मुस्लिम कानूनों के द्वारा ही मामला व सुनवाई की जाती थी।
3. इस एक्ट के द्वारा ही प्रांतीय न्यायालयों को अपनी अपील गवर्नर जनरल इन काउंसिल में की जाएगी न की सर्वोच्च न्यायालय में की जाएगी।
4. इस एक्ट के अनुसार कोलकाता की सरकार को बंगाल बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का प्राधिकार प्रदान किया था
Pints India Act (पिंट्स इंडिया एक्ट), 1784
परिषद के सदस्यों की संख्या (परिषद गवर्नर जनरल 4 से घटाकर तीन कर दी गई )।
- गवर्नर जनरल( बंगाल का) को अधिकारी शक्ति दे दी गई। इसमें कंपनी का राजनीतिक और वाणिज्य कार्यों को अलग अलग कर दिया गया।
2. कंपनी के भारतीय अधिकृत प्रदेशों को पहली बार ब्रिटिश अधिकृत प्रदेश कहां गया।
आशा करते हैं कि हमारे द्वारा इस लेख में दी गई जानकारी से आपके आने वाले सभी एग्जाम के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे इसलिए के बाद हम आपको अगले लेख में भारत के अलग-अलग चार्टर एक्ट के बारे में विस्तार से अध्ययन किया जाएगा कृपया करके हमारे सोशल मीडिया के अलग-अलग चैनल को लाइक सब्सक्राइब कमेंट करें।
जैसा की हमने अभी तक regulating act pints India act के बारे में पड़ा आगे के लेख में हम charter act के बारे म विस्तार से पढ़ने वाले है