पंचायती राज (Panchayati Raj)1994,73rd Constitution Amendment Act
पंचायती राज का अर्थ [ Meaning of Panchayati Raj ‘ पंचायत ‘ ( Panchayat ) शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द ‘ पंचायतन् ‘ से हुई है , जिसका अर्थ है ‘ पाँच व्यक्ति का समूह ‘
‘ पंचायत ‘ लोकतांत्रिक विकन्द्रीकरण ‘ ( Democratic Decentralization ) का रूप देखने को मिलता है ह , जिसमें प्रशासनिक एवं सत्ता के अधिकारों को केन्द्र से गाँवों को हस्तांतरित किया गया है ।
पंचायती राज( Panchayati Raj )
भारत में पंचायती राज के विकास को प्राचीन भारत , ब्रिटिश शासनकाल एवं स्वतंत्र भारत में किए गए प्रयासों को समझना होगा ।
प्राचीन भारत में पंचायतें ( Panchayats in Ancient India )
भारत में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण का साकार स्वरूप आजादी के बाद ही देखने को मिलता हैं।परन्तु इसकी परकिल्पना प्राचीन भारत में भी विद्यमान थी ।
भारत में वैदिक काल ग्राम प्रशासन का उत्तरदायित्व ग्राम पंचायत पर था ।
भारत में विद्यमान पंचायती राज व्यवस्था का उल्लेख चाणक्य के अर्थशास्त्र में मिलता है ।
गुप्तकालीन भारत में ‘ ग्राम ‘ शासन की छोटी इकाई होते थे ।
चोल प्रशासन में तो पूर्ण आायत ग्रामीण शासन की महत्त्वपूर्ण व्यवस्था थी ।
मुगलकाल में भी गाँव ही प्रशासन की सबसे छोटी इकाई थी ।
ब्रिटिश शासनकाल में पंचायतें ( Panchayats in British President )
स्थानीय स्वशासन के नाम पर ब्रिटिश शासन के दौरान सर्वप्रथम सन् 1687 में मद्रास में नगर निगम की स्थापना की गई थी ।
दिसम्बर 1870 को लॉर्ड मेयो ने सत्ता के विकेन्द्रीकरण और स्वायत्तशासी संस्थाओं के गठन के लिए कौंसिल ( Council ) प्रस्ताव लाकर जनता की सहभागिता स्थापित करने का पहला प्रयास किया ।वर्ष 1882 में लॉर्ड रिपर ने स्थानीय स्वशासन को स्वशासी बनाने का प्रस्ताव दिया । जिसमे
( i ) गैर – सरकारी सदस्य जनता द्वारा चुने जाएँगे ।
( ii ) जनप्रतिनिधि ही बोड़ों के अध्यक्ष होंगे
iii ) प्रत्येक प्रान्त अपनी स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर प्रस्ताव को अमल में लाएगा ।परंतु रिपन का यह प्रस्ताव पूरी तरह लागू न हो सका , लेकिन लॉर्ड रिपन को ” भारत में स्वायत्त शासन की संस्थाओं का जनक ( Father of Local Self Government in India ) माना जाता है
1919 में ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम 1919 पारित किया , जिसे ‘ मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड ‘ सुधार के नाम से जाना जाता है । 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने जहाँ पंचायत का विषय राज्य सरकारों को हस्तांतरित किया , वहीं भारत सरकार अधिनियम , 1935 ने पंचायतों को प्रान्तीय विधायी सूची में सम्मिलित किया था ।
स्वतंत्र भारत में पंचायती राज ( Panchayati Raj in Independent India ) गांवों में पंचायतों की स्थापना के महत्त्व को समझते हुए संविधार के अनुच्छेद 40 में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करेगा और उन्हें इतनी शक्तियाँ व अधिकार देगा जिससे वे स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बन सकें ।
पंचायती राज में सुधार करने के लिया निम्नलिखत समितियों को गठित किया गया .
1.बलवंत राय मेहता समिति 1957
2.अशोक मेहता समिति 1977
3. P.V.K. समिति राय 1985
4. एल.एम. सिंघवी समिति 1986
5.64 वा सविधान संशोधन 1989
6. 73 वा सविधान संशोधन 1993
इस कार्य के लिए भारत सरकार द्वारा सन 1956 में श्री बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया । इस समिति द्वारा की गई सिफारिशें 1957 में प्रकाशित हुए जिसने तीन – स्तरीय पंचायती राज की स्थापना करने का समर्थन किया है इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर भारत के कई राज्यों में पंचायती राज की स्थापना हुई । पंचायत की सबसे पहले स्थापना राजस्थान में 2 अक्तूबर , 1959 को हुई । दूसरे स्थान पर आंध्रप्रदेश ,जहाँ पर पंचायती राज 1 Nov 1959 को स्थापित किया गया ।
अशोक मेहता समिति ( Ashok Mehta Committee )
अशोक मेहत्ता सन् 1977 में जनता पार्टी की सरकार में है । अशोक मेहत्ता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसने पंचायती राज के सम्बन्ध में अपने सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया । इस समिति द्वारा दी गई कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें निम्नलिखित थीं
( a ) पंचायतों के कार्यों को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उन्हें अधिक शक्तियाँ दी जाएँ ।
( b ) पंचायती राज दो – स्तरीय होना चाहिए । ग्राम पंचायत को समाप्त कर देना चाहिए ।
( c ) जिले के अधिकारियों को जिला परिषद् के नियंत्रण में रखा जाए .
(d) पंचायती राज की दो संस्थाएँ – मंडल पंचायत तथा जिला परिषद् का कार्यकाल 4 वर्ष होना चाहिए । इन सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया और त्रि – स्तरीय व्यवस्था ( Three tier System ) पर सहमत थे ।
एल ० एम ० सिंघवी समिति ( Dr. L.M. Singhvi Committee )
पंचायती राज संस्थाओं की समीक्षा करने के लिए सन् 1986 में एल ० एम ० सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया । इस समिति ने यह सिफारिश की कि पंचायती राज संस्थाओं को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें अधिक वित्तीय साधन उपलब्ध करवाए जाए ।इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1993 के द्वारा पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया
पंचायती राज बिल , 1989 ( Panchayati Raj Bil , 1989 ) –सम्पूर्ण देश में पंचायती राज का पुनर्गठन करने तथा इसे अधिक सक्रिय बनाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा 1989 में एक बिल पेश किया गया इसे लोकसभा ने तो पास कर दिया , परन्तु राज्यसमा ने अस्वीकार कर दिया
पंचायती राज की बुराइयों को दूर करने के लिए लोकसभा ने 22 दिसंबर , 1992 को एक संवैधानिक संशोधन पारित किया , जिसे राज्यसभा ने अगले ही दिन पास कर दिया । उसके पश्चात् भारतीय संघ के 17 राज्यों द्वारा इसे स्वीकृति मिलने पर राष्ट्रपति ने इसे अपनी मंजूरी दे दी और 24 अप्रैल , 1994 को यह विधेयक संविधान के 73 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के रूप में लागू हो गया । अक्तूबर , 1994 में राष्ट्रपति के द्वारा सभी राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने का अध्यादेश जारी कर दिया । इस तरह भारत में पंचायती राज अपना व्यावहारिक रूप ले पाया और गाँधी के ग्राम स्वराज के स्वपनों को साकार रूप देने का प्रयास किया जिसमें वे मानते थे कि ” ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि यह एक ऐसा सम्पूर्ण प्रजातंत्र होगा जो अपनी | अहम् जरूरतों के लिए अपने पड़ोसियों पर भी निर्भर नहीं रहेगा ।
पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित 73 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ [ Main features of 73rd Constitution Amendment Act related to Panchayati Raj System ]
1. ग्रामसभा की परिभाषा ( Definition of Gram Sabha ) एक पंचायत के क्षेत्र में आए गाँवों के जिन लोगों के नाम मतदाताओं की सूची में दर्ज हैं – ये सभी लोग सामूहिक रूप से ग्रामसभा का निर्माण करेंगे ।
2. तीन स्तरीय पंचायती राज प्रणाली ( Three Tier System of Panchayati Raj ) – अनुच्छेद 243 ( ख ) त्रिस्तरीय पंचायती राज की व्यवस्था करता है । प्रत्येक राज्य में
निम्न स्तर पर ग्राम पंचायत ,
मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत समिति
सबसे ऊपर जिला स्तर पर जिला परिषद् का गठन किया जाएगा
परंतु उस राज्य में जिसकी जनसंख्या 20 लाख से अधिक नहीं है , वहाँ मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत समितियों का गठन करना आवश्यक नहीं होगा । प्रत्येक राज्य में पंचायतों की संरचना संबंधी व्यवस्था संबंधित राज्य के विधानमंडल द्वारा की जाएगी ।
3. पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता ( Constitutional Recognition to Panchayati Raj Institutions )
इस संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग ( Part – IX ) तथा एक नई अनुसूची शामिल किए गए हैं । भाग 9 में अंकित सभी अनुच्छेद तथा 11 वीं अनुसूची में उच्च विषयों का वर्णन किया गया है , जिनके संबंध में शक्तियाँ पंचायतों को सौंपी जा सकती हैं ।
4. सदस्यों का प्रत्यक्ष चुनाव ( Direct Election of Members of Panchayats ) –
पंचायत के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से लोगों द्वारा किया जाएगा ।
5. स्थानों का आरक्षण
प्रत्येक पंचायत में चुनाव द्वारा भरे जाने वाले स्थान में से 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा ।
6.पंचायतों का कार्यकाल
पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष होगा यह कार्य कार्यकाल पंचायत की पहली बैठक की तिथि से आरंभ होगा किसी भी सत्र की पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष से अधिक नहीं हो सकता.
7. पंचायतों के कार्य
संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में कुल 29 विषय रखे गए हैं इन पर पंचायत कानून बनाकर उन कार्यों को कर सकती है
निष्कर्ष ( Conclusion ) – 73 वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम इस कारण से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि इसके अनुसार पंचायती राज की संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है की इस अधिनियम के अनुसार पंचायतों का कार्यकाल निश्चित करके उनके चुनावों की निश्चित अवधि पर यह व्यवस्था की गई है कि इन संस्थाओं को अब छः महीने से अधिक समय तक भंग अथवा स्थगित नहीं किया जा सकता । इस एक्ट के पास होने से पहले इन संस्थाओं के चुनाव कई – कई वर्षों तक नहीं होते थे । इसके अतिरिक्त पंचायतों की वित्तीय स्थिति में सुधार करने के लिए उन्हें कर लगाने की शक्ति देना तथा वित्तीय आयोग की स्थापना करना भी पंचायती राज प्रणाली को मजबूत बनाने के महत्त्वपूर्ण कदम हैं ।
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