आज इस लेख में NCERT पॉलिटिकल साइंस के प्रथम समकालीन विश्व राजनीति के गुटनिरपेक्षता आंदोलन के उस दौर की बात करेंगे जब विश्व की दो महाशक्तियों USA और USSR के रूप में जानी जाती थी।
यह लेख आपको हर एक एग्जाम चाहे आप गवर्नमेंट या किसी प्राइवेट संस्था सभी के लिए महत्वपूर्ण है। यह वह दौर था जब विश्व पूरी तरह दो भागो में बंटा हुआ था विश्व के सभी देश इन दो महान शक्तियों में किसी ने किसी वजह से जुड़े हुए थे ।चाहे वह जिनका कमजोरी समझो या अपने देश को बचाने के लिए सभी देश इन दोनों महान शक्तियों के अंतर्गत अपना देश चला रहे थे।
उस समय विश्व में कुछ ऐसे भी देश थे।जो इन दो महान शक्तियों में शामिल न होकर अपना एक अलग संगठन बना लेते हैं जो अभी अभी उपनिवेशिक शासन ब्रिटेन या फ्रांस से स्वतंत्र हुए हो.।
आज हम बात करेंगे गुटनिरपेक्षता आंदोलन के उद्भव के बारे में विस्तार से चर्चा करने वाले हैं और साथ ही हम इसके सदस्य देशों व संस्थापकों के बारे में बात करेंगे
गुटनिरपेक्षता आंदोलन
हमने पिछले लेख में शीत युद्ध ( cold war ) के बारे में विस्तार से अध्ययन किया था। इसी शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन उभर कर सामने आया इसी लेख में हम इसे विस्तार से अध्ययन करने वाले हैं
गुटनिरपेक्षता का अर्थ
इसका मतलब यह है यह दोनों महाशक्तियों में शामिल न होने का आंदोलन था.इसका मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि यह अंतरराष्ट्रीय मामलों से अलग-थलग रहने वाले थे ।गुटनिरपेक्षता का मतलब पृथकतावाद भी नहीं है पृथकतावाद का अर्थ है अपने को अंतरराष्ट्रीय मामलों से अपने आप को अलग रखना नही होता है।उदाहरण के लिए जब USA 1789 में आजाद हुआ था तो उसने अपने आप को प्रथम विश्व युद्ध के शुरू में अंतरराष्ट्रीय मामलों से अलग रखे हुए था। उसने पृथकतावाद की विदेश नीति को अपनाया।
गुटनिरपेक्षता का उद्भव या संस्थापक
इसका उद्भव एशिया, अफ्रीका लातिनी ,USA के कुछ देश जो अभी-अभी स्वतंत्र हुए हैं इसी को ही तीसरी दुनिया भी कहा जाता था इन्होंने ही मिलकर गुटनिरपेक्षता का गठन किया।
संस्थापक देश मुख्य रूप से इसके 5 देशों के प्रमुख नेता हुए लेकिन, इसके संस्थापक के रूप में शुरू में तीन ही जाने जाते हैं।
1.भारत के प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ।
2.मिस्र के पूर्व प्रेसिडेंट गयाल अब्दुल नासिर ।
3.युगोस्लाविया के प्रेसिडेंट टीटो
तीनों ने मिलकर सन 1956 में सफल बैठक हुई बाद में 1960 के अंदर दो देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुक्राणो और घाना के क्वांमे एन्क्रुमा भी इसमें शामिल हुए थे।
पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन सन 1961 को बेलग्रेड में हुआ जिसमें 25 सदस्य देश शामिल हुए वर्तमान में इनकी सदस्य देशों की संख्या 120 है और इस सम्मेलन के अंदर कुछ मुख्य बातों की चर्चा की गई जिसमें तीन मुख्य रूप से मानी जाती है :-
1 इन 5 देशों के बीच सहयोग
2. शीत युद्ध का प्रसार और इसके बढ़ते हुए दायरे
3. नए स्वतंत्र देशों का नाटकीय उदय
नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की शुरुआत
जितने भी देश गुटनिरपेक्षता आंदोलन या संगठन के सदस्य थे इन सभी सदस्य देशों को अल्प विकसित देश का दर्जा दिया गया था क्योंकि यह सभी देश अभी अभी आजाद हुए थे। इनके सामने चुनौतियां बहुत सारी थी जैसे गरीब विकास अपने देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए नए नए अवसर पैदा करवाना जिसमें भारत भी शामिल था।
गुटनिरपेक्ष के प्रथम सम्मेलन में आर्थिक मुद्दे ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं बने रहे लेकिन 1970 के दशक तक आते-आते इन्होंने अपनी आर्थिक मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा बातें वह काम करना शुरू कर दिया था क्योंकि उन्हें विकसित देश व महान शक्तियों से लड़ने की भी एक चुनौती बनी रहती थी इसी को ध्यान में रखते हुए UNO के व्यापार और विकसित से संबंधित सम्मेलन 1972 के अंदर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई इसी रिपोर्ट में कहा गया.
1.अल्प विकसित देशों को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण होगा
2.यह देश अपना समान बाहर के देशों को बेच सकते हैं
3.यदि बाहर से कोई सामान मंगवाया जाता है तो वह कम लागत पर उपलब्ध होगानिष्कर्ष
गुटनिरपेक्षता का अर्थ व कहानी तो आपने पढ़ ली होगी मगर बात यह समझ में नहीं आई अगर भारत में अपना एक अलग संगठन बनाया तो क्या उसको फायदा हुआ या नुकसान तो यहां पर हम आपको बताना चाहेंगे कि
भारत व अन्य गुटनिरपेक्षता वाला देशों को फायदा हुआ क्योंकि यह अपने युद्ध के निर्णय ले सकते थे इन पर किसी भी शक्ति का किसी भी प्रकार का दबाव नहीं था
मैं भी कोई महान शक्ति इन पर अपना दबाव बनाना चाहती क्योंकि अगर एक शक्ति दबाव बनाएगी तो वह दूसरे की तरफ चला जा सकता है आगे हम आपको बताएंगे कि शिवजी और भारत के संबंध पर पूरे विस्तार से चर्चा करेंगे