हमने अक्सर भारत में प्रचलित मुख्य सम्वत के बारे में जरूर सुना है. लेकिन हमने कभी इसके इतिहास को जानने की कोशिश ही नहीं की और ना ही हम कभी यह जान पाए किन की शुरुआत कब हुई. how many samvat in india जिनमें विक्रम सम्वत , शक संवत ,गुप्त संवत,हिजी सन , इसवी सन ,फसली और जुलूसी सन के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे भारत विश्व की प्राचीन देशों में से एक है. और इसकी सभ्यता और संस्कृति बहुत ही पुरानी मानी जाती हैं और इसी कारण मनुष्य जाति के कई सभ्यताओं का विकास की शुरुआत इस देश से हुई है. मनुष्य सभ्यता और संस्कृति के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष काल को माना जाता है,काल ही है जिसकी वजह से दिन-रात जन्म मरण गर्मी सर्दी बरसात आदि होती है. भारत वर्ष के अंदर 1 वर्ष या 365 दिन के काल की इकाई को हम संवत्सर कहते हैं. और संवत्सर की गणना के लिए जिस शब्द का निर्धारित किया गया है उसे हम सामान्य भाषा में सम्वत या फिर सन कहते हैं।
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बीत चुका वर्ष और वर्तमान में चल रहे वर्ष के बीच का बोध कराने वाले सबसे पहले संवत का श्रीगणेश दुनिया में कब और कहां हुआ इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. लेकिन अधिकांश विद्वान यह मानते हैं की इन संवत या सन प्रणाली का विकास दुनिया में आज से 2763 वर्ष पहले बेबिलोनिया में हुआ था। भारतवर्ष में वैदिक साहित्य को देखने से ही हमें पता चलता है. कि दीर्घतमस ऋषि द्वारा सबसे पहले वैदिक संवत चलाया था. लेकिन यह पता लगाना मुश्किल है. यह कब और आज से कितने वर्ष पहले वैदिक संवत की शुरुआत हुई थी.
कलियुग सम्वत -दीर्घतमस ऋषि के अलावा इससे पहले भी शताब्दियों में भारत में 3102 ईसा वर्ष के माघ महीने के शुल्क पक्ष की पूर्णिमा कलियुग संवत नाम से एक अन्य सम्वत का प्रारंभ हुआ था
युधिष्ठिर संवत इसी प्रकार से महाभारत के समय मैं भी 2449 ईसा पूर्व में पांडवों के सबसे बड़े पुत्र युधिष्ठिर के नाम पर युधिष्ठिर संवत की शुरुआत हुई थी।
बुद्ध सम्वत इसके अलावा भारत में महात्मा बुद्ध के जीवन काल कि किसी घटना से 544 ईसा पूर्व में बुद्ध सम्वत के नाम से एक अन्य संवत की शुरुआत की गई थी.
महावीर संवत जैन धर्म के 24 वे तीर्थकर भगवान महावीर के निर्वाण कार्तिक प्रतिपदा (एकम ) से महावीर निर्वाण संवत नाम से एक अन्य संवत शुरू किया गया था। इस संवत की शुरुआत 527 वर्ष पहले हुई थी और इस समय का प्रारंभ होने और भारत में प्रचलित रहने की जानकारी हमें जैन ग्रंथों और शिलालेखों से मिलती है.
विक्रम संवत क्या है और इसकी शुरुआत कैसे और कब हुई
विक्रम संवत भारत में प्रचलन में आने वाला सम्वतों में सबसे प्रसिद्ध विक्रम संवत को माना जाता है. विक्रम संवत की शुरुआत भारत में बसने वाले मालवा जाती अथवा मालव गण के लोगों कि भारत में मध्य एशिया से आने वाले शको पर विजय प्राप्त करने की खुशी में इसकी शुरुआत हुई थी. इस संवत की जानकारी हमें 11 वीं शताब्दी या इसके बाद के भारत में कई शिलालेखों तथा ग्रंथों में मिलती है. लेकिन इस संबंध से संबंधित प्रारंभिक शिलालेखों से ज्ञात होता है कि इस को प्रारंभ में कृत संवत कहा जाता था. लेकिन धीरे-धीरे इसे मालव संवत के नाम से जाना जाने लगा. इस सम्वत का उल्लेख प्रारंभिक रूप से राजस्थान में चित्तौड़गढ़ के पास स्थित नगरी या गंगरार से प्राप्त शिलालेखों में विजयगढ़ ,गंडवा तथा मध्यप्रदेश के मंदसौर नामक स्थानों से प्राप्त शिलालेखों में मिलता है. कुछ विद्वानों का मानना है की कृत शब्द उनकी सेना के सेनापति का नाम था और उनके नेतृत्व में ही शको पर मालव गणों ने विजय प्राप्त की थी।
मानव गणों के लोगों के द्वारा प्रारंभ किया गया कृत सम्वत अथवा मालवा संवत ही बाद में जाकर विक्रम संवत के नाम से पूरे भारत में प्रसिद्ध हुआ. प्राचीन भारत के जिस प्रसिद्ध सम्राट के नाम पर कृत सम्वत को ही विक्रम संवत कहा गया वह भारत के गुप्त वंश का सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य था। इस प्रश्न पर विद्वानों का मानना है चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल तक कृत सम्वत भारत में विख्यात नहीं हो पाया था केवल मालवा प्रदेश , राजस्थान और मध्य प्रदेश के पश्चिम भाग तक की कृत सम्वत का समय प्रचलित था। लेकिन चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल और उसके बाद 11वीं शताब्दी से पहले के शिलालेखों से हमें जानकारी प्राप्त होती है.कि विक्रम संवत नाम दे दिए जाने के बाद भी यह संवत 10 वीं शताब्दी के अंत तक भारत में प्रचार प्रसिद्ध नहीं हुआ था इसके बाद 11वीं शताब्दी के शुरू से ही विक्रम संवत का व्यापक प्रसार हुआ और इस समय का प्रचुर प्रयोग सबसे पहले गुजरात के चालुक्य वंशी राजा भीमदेव ने किया था। और इसी तरह कन्नौज के प्रतिहार शासको ने भी विक्रम संवत को महत्व देकर प्रचुर प्रयोग करना प्रारंभ किया उसके बाद यह विक्रम संवत भारत के विभिन्न भागों में लोकप्रिय हो गया.
विक्रम संवत के बारे में यह भी जानने को मिलता है. की विक्रम संवत के वर्ष के प्रारंभ भारतीय पंचांग के 12 महीनों में से चैत्र महीने की शुल्क पक्ष की प्रतिपदा या पहली तिथि से प्रारंभ हुई थी और इसकी समाप्ति आगे आने वाले चैत्र महीने की अमावस्या को हो जाएगी। ऐसी स्थिति में उत्तर भारत में विक्रम संवत का प्रारंभ और अंत एक ही चैत्र महीने में होती है। किंतु दोनों में से 1 वर्ष का अंतर है. भारत के गुजरात प्रदेश में विक्रम संवत का प्रारंभ चैत्र महीने के शुल्क पक्ष के प्रति प्रतिपदा से ना होकर चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से होता है. यही स्थिति में विक्रम संवत की समाप्ति फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को होती है. गुजरात की भांति दक्षिण भारत में भी विक्रम संवत के वर्ष का प्रारंभिक महीना कृष्ण पक्ष से होता है। भारत में मनाए जाने वाले कतिपय महत्वूर्ण त्याहारों में उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अंतर हो जाता है. बंगाल में विक्रम संवत का प्रसार कम है। विक्रम संवत तक के वर्ष में से 57 घटा देने से इस समय के वर्ष का इसवी सन प्राप्त हो जाता है.