हेलो दोस्तों आज हम मौलिक अधिकारों के बारे में अध्ययन करने वाले है मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किया जाता है मौलिक अधिकार और संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है और इसका वर्णन संविधान के भाग 3 अनुच्छेद 12 (Article 12) से लेकर 35 तक है और इसी बात को भारत का अधिकार या पत्र मैग्ना कार्टा भी कहा जाता है
मौलिक अधिकारों में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान (आर्टिकल 352) जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है
यह असीमित नहीं है लेकिन वाद योग्य होते हैं राज्य उन पर प्रतिबंध लगा सकता है प्रतिबंध का कारण उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है ।
मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 ,उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 तहत जा सकता है पीड़ित व्यक्ति सीधा SC भी जा सकता है।
मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे ,लेकिन 44वे संविधान संशोधन 1978 के द्वारा संपत्ति का अधिकार अनुच्छेद 31 एवं 19क को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे सविधान के भाग X|| अनुच्छेद 300 क अंतर्गत कानूनी अधिकार के रखा गया ।
समानता का अधिकार अनुच्छेद 14 से 18
स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 से 22
शोषण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 23 से 24
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 से 28
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार अनुच्छेद 29 से 30
संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 32
अमेरिका में राज्य को पूरी तरह अपूर्ण माना जाता है जबकि अमेरिका वासियों को पूरी तरह पूर्ण अमेरिका में मौलिक अधिकार जो वहां के सविधान के प्रथम 10 संशोधनों पर आधारित है इन्हें बिल ऑफ राइट्स कहते हैं राज्य के विरुद्ध उपलब्ध है वहां के नागरिकों को दूसरे संशोधन के आधार पर अस्त्र-शस्त्र तक रखने की छूट है
अमेरिका में मौलिक अधिकार विधायिका और कार्यपालिका दोनों के विरुद्ध उपलब्ध हैं भारत में कुछ अपराधों को छोड़कर यह अधिकार अमेरिका की भांति ही नागरिकों को उपलब्ध है हालांकि ब्रिटेन में लिखित संविधान न होने के कारण और स्पष्टता को विल ऑफ राइट न होने के कारण यह अधिकार वहां के नागरिकों को केवल कार्यपालिका के विरुद्ध उपलब्ध हैं इसलिए ब्रिटिश संसद को संप्रभु माना जाता है वास्तव में ब्रिटेन में वहां की संसद के द्वारा बनाए गए मूल कानूनों के परिप्रेक्ष्य में ही वहां के हाई कोर्ट कार्यपालिका के निर्णय को सीमित करने के लिए अथवा रद्द करने के लिए संवैधानिक व्याख्या करते हैं
भारत में मौलिक अधिकार का वर्गीकरण
वह मौलिक अधिकार जो केवल नागरिकों को उपलब्ध है
अनुच्छेद 15 केवल धर्म, जाति ,प्रजाति, लिंग ,जन्म स्थान में से किसी एक के आधार पर राज्य नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता।
अनुच्छेद 16 लोक सेवा योजना अथवा राज्य के अधीन नौकरी में सभी नागरिकों को समान अवसर उपलब्ध होंगे
अनुच्छेद 19 – 6 स्वतंत्रता है
अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के लिए सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार
ऐसे मौलिक अधिकार जो भारत भूमि पर निवास करने वाले व्यक्ति को उपलब्ध हो सकते हैं
अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समता
अनुच्छेद 20 कुछ मामलों में अभियोजन मुकदमा चलाने और सजा पाने से संरक्षण
अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता (बिना कानून के किसी व्यक्ति को उसके प्राण और दैहिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता)
अनुच्छेद 23 शोषण के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 27 किसी धर्म के प्रोत्साहन के लिए एकत्रित किए गए धन पर कर की छूट
अनुच्छेद 28 किसी धार्मिक उपदेश अथवा प्रार्थना में किसी शैक्षणिक संस्थान में भाग न लेने की सफलता स्वतंत्र स्वतंत्रता
ऐसे मौलिक अधिकार जिनमें निसंघात्मक वाक्य का प्रयोग हुआ है अनुच्छेद 14 ,15(1),18(1), 20, 22(1),28(1 )
(इनमें NO से चीजें शुरू हुई है )
ऐसे मौलिक अधिकार जो मुख्यत कार्यपालिका के विरुद्ध उपलब्ध है जबकि विधानसभा को वे सकारात्मक अधिकार प्रदान करते हैं अनुच्छेद 21 तथा मौलिक अधिकारों के कुछ अपवाद।
मौलिक अधिकारों में मौलिक क्या है
इन अधिकारों को निम्नलिखित दो चीजें मौलिक बनाती है
. 1 इनमें से कई अधिकार जैसे बोलने का अधिकार ,विचरण, धर्म का अधिकार इत्यादि राज्य के अस्तित्व में आने से पहले मानव को उपलब्ध रहे हैं अंत: राज्य के अस्तित्व में आने के बाद भी यह अधिकार उसे उपलब्ध होनी चाहिए।
2. सभी प्रकार के मौलिक अधिकारों को संविधान में प्रत्याभूत किया गया है इनका सरक्षंक सीधा सुप्रीम कोर्ट को बनाया गया है ।अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय से न्याय पाना भी मौलिक अधिकार बना दिया गया है इसलिए डॉक्टर अंबेडकर इस उपबंध को संविधान की आत्मा व उसका हृदय कहते हैं
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग अनुच्छेद 12 से 35 में किया गया है
अनुच्छेद 12(Article 12 )
अनुच्छेद 12 में राज्य शब्द की परिभाषा दी गई है जिसमें केंद्रीय कार्यपालिका संसद राज्य की सरकारें और विधानसभा भारत के क्षेत्र में स्थित सभी स्थानीय सरकारें तथा अन्य विभाग सम्मिलित हैं कोई अन्य एजेंसी या प्राधिकरण जिन पर भारत सरकार का नियंत्रण स्थापित है
.इन को स्पष्ट करने के लिए कि कोई अन्य एजेंसी या प्राधिकरण किस प्रकार राज्य है सर्वोच्च न्यायालय ने अजय हासिया बनाम खालिद सेहरा वर्दी 1980 श्रीनगर में राज्य के निर्धारण के लिए निम्नलिखित शर्तें तय की
1. किसी संस्था, संगठन आदि का निर्माण राज्य द्वारा किसी विधि के अंतर्गत किया गया हो जिस पर राज्य का नियंत्रण हो जैसे राष्ट्रीय कपड़ा निगम
2. राज्य द्वारा वित्त पोषित हो ( इसकी शत-प्रतिशत चुकता पूंजी राज्य के द्वारा प्रदान की गई हो)
3. यह निकाय अपने खर्चे के लिए राज्य के द्वारा प्रदत आर्थिक सहायता पर निर्भर हो
4 इन पर राज्य का व्यापक नियंत्रण हो भले ही कुछ आंतरिक मामलों में यह निर्णय लेने में स्वतंत्र हो
5. राज्य के द्वारा इसे एकाधिकार (किसी मामले में दिया गया हो)
6. निगम के द्वारा यदि कोई सार्वजनिक कार्य किया जाता है अथवा यह वही कार्य करता है जो सरकार सरकार करती है तो इसे भी राज्य माना जाएगा।
प्रदीप कुमार विश्वास बनाम भारतीय रसायन विज्ञान संस्थान 2002 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट में अजय हाशिया के मुकदमे में दी गई अपनी व्यवस्था को कायम रखा और अन्य तथ्यों को भी स्पष्टकिया। जैसे यदि कोई एजेंसी या संगठन वित्तीय कृत्यात्यक तथा प्रशासनिक रूप से सरकार द्वारा नियंत्रित है और सरकार द्वारा यह नियंत्रण पूरी तरह स्पष्ट है तो ऐसी स्थिति में वह राज्य माना जाएगा यही बात उन धार्मिक तथा दान उपदान में लगी मठों व संस्था पर भी लागू होता है जो धार्मिक संस्थाओं के संचालन के लिए नियम बनाती है और किसी न किसी रूप में सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त करती है
अनुच्छेद 13 (Article 13 )मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पिकरण करने वाली विधियां से संबंधित है
13(1) संविधान लागू होने की तिथि से पूर्व/ पहले से प्रभावी कोई कानून जिस सीमा तक भाग-3 के साथ असंगत होंगे उस सीमा तक उन्हें निष्प्रभावी माना जाएगा
भीका जी नारायण बनाम MP राज्य 1995 विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने ग्रहण का सिद्धांत प्रतिपादित किया था और यह संविधान पूर्व कानूनों पर ही लागू होता है इसके लिए निम्नलिखित दो कानूनी अधिकार स्थापित किए गए थे
1. पहला सविधान पूर्व कानून प्रारंभ से ही निष्प्रभावी नहीं रहे हैं (क्योंकि पहले भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकार लागू नहीं थे)
2. यह कानून केवल उसी सीमा तक निष्प्रभावी होगे जिस सीमा तक यह भाग 3 के साथ असंगत है
सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि यदि पूर्व कानून संविधान कानून भाग 3 के साथ संगत है तो यह देखना होगा कि वह किस सीमा तक असंगत है यदि पूरा कानून असंगत हो तो ग्रहण का सिद्धांत पूरे कानून पर लागू होगा अन्यथा वह केवल उसी भाग पर लागू होगा जो भाग के साथ में मेल नहीं खाता है इस सिद्धांत के अनुसार बेमेल कानून तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक संसद का उपयुक्त संशोधन कर बाहर 3 के साथ सुसंगत नहीं बना देती है।
अनुच्छेद 13(2) का विस्तारीकरण
यदि राज्य कोई ऐसी विधि निर्मित करती है जो भाग 3 के किसी भी उपबंध के साथ असंगत है तो वह असंगत की सीमा तक अथवा उल्लंघन की सीमा तक प्रारंभ से ही निष्प्रभावी रहेगी उन्हें इसी उपबंध में यह कहा गया है कि राज्य यदि इस भाग को सीमित करने अथवा इसका हरण करने का प्रयास करता है तो ऐसी कानून भी प्रारंभ से उस सीमा तक शून्य माने जाएंगे जिस सीमा तक वे लघुकरण या हरण का प्रयास करते हैं
13(3a ) उन कानूनों का जिक्र नहीं है जो विधानमंडल के द्वारा बनाए जाते हैं
13(3b) संविधान लागू होने की तिथि के पूर्व से प्रभावि कानून ( बशर्तें उन्हें रद्द न किया गया हो )जिसे किसी विधान मंडल या सक्षम प्राधिकारी ने बनाया हो भी भाग 3 के साथ असंगत होने पर निष्प्रभावी होंगे।