नमस्कार दोस्तो आज हम इस लेख मे charter act 1793 1813 1833 1853 को विस्तार से अध्ययन करने वाले हैं जो सभी एग्जाम SSC banking, Railway, HSSC के लिया बहुत महत्पूर्ण हैं
चार्टर एक्ट (Charter Act 1793 1813 1833 1853)
charter act 1793, 1813, 1833 और 1853 ई. में पास किये गये। ईस्ट इंडिया कंपनी का आरम्भ महारानी एलिजाबेथ प्रथमद्वारा वर्ष 1600 ई. के अन्तिम दिन प्रदत्त चार्टर के फलस्वरूप हुआ। इस चार्टर में कम्पनी को ईस्ट इंडीज में व्यापार करने का अधिकार दिया गया था।
चार्टर अधिनियम (charter act ) 1793
ब्रिटिश सरकार के द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी को 20 वर्षों का अकाधिकार प्रधान किया गया था जो की Regulating act 1773 के बाद चार्टर एक्ट के रूप में भारत आया
चार्टर अधिनियम 1793 विशेषता
1786 के अधिनियम में गर्वनर जनरल को अपनी परिषद से स्वतंत्र रखा गया वह अपनी परिषद के निर्णय को मानने के लिए बाध्य नहीं था ।
भारत पर व्यापार के एकाधिकार को आगे 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
पहले कंपनी के कर्मचारियों का वेतन ब्रिटिश राजकोष से दिया जाता था लेकिन अब इन सदस्य और कर्मचारियों का वेतन भारत के राजस्व में से दिया जाने लगा।
कंपनी के वशिष्ठ अधिकारियों को बिना अनुमति के भारत छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया अगर वह ऐसा करते हैं तो इसे इस्तीफा माना जाएगा
इस अधिनियम के द्वारा कंपनी को भारत में व्यापार करने के लिए व्यक्तियों और कंपनी के कर्मचारियों को लाइसेंस देने का अधिकार दिया गया।
इस एक्ट के द्वारा उनके राजस्व प्रशासन और न्यायपालिका के कार्य को अलग कर दिया गया जिसके कारण माल अदालतें राजस्व न्यायालय लुप्त हो गए
चार्टर अधिनियम 1813
20 वर्षों के बाद 1813 का एक्ट लाया गया इस कानून को भारत में लागू करने का प्रमुख कारण था।
ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति जिससे वहां बहुत ज्यादा मात्रा में उत्पादन शुरू हो चुका था और इस उत्पादन के लिए एक बाजार की आवश्यकता महसूस की गई ,इसलिए वहां के उद्योगपतियों ने ब्रिटेन की सरकार के ऊपर दबाव बनाया जिससे ब्रिटेन की सरकार के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए एक चार्टर एक्ट 1813 को लागू किया गया ।
चार्टर अधिनियम 1813 की प्रमुख विशेषताएं
इस एक्ट के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के एकाधिकार को समाप्त किया गया साथ ही भारतीय व्यापार को सभी ब्रिटिश व्यापारियों के लिए खोल दिया गया लेकिन इस एक्ट के द्वारा चाय का व्यापार और चीन (अफीम) के साथ व्यापार में कंपनी के एकाधिकार को बनाया रखा है
इस एक्ट के द्वारा ही भारत के बहुत सारे लोग जो हस्तकारी का काम करते थे उनको इसका का शिकार होना पड़ा क्योंकि बहार से आती वस्तु भारत के मुकाबले सस्ती थी इस एक्ट के बाद ही अंग्रेजों ने मुफ्त व्यापार की नीति को अपनाया।
1813 के अधिनियम से पहले भारत में ईसाई पादरियों को आने की अनुमति नहीं लेकिन 1813 के बाद भारत में ईसाई पादरियों को आने की अनुमति मिल गई जिससे धर्मांतरण करने की भी कोशिशें की गई
इस एक्ट के द्वारा ही पश्चिमी शिक्षा के ऊपर ज्यादा ध्यान दिया गया ताकि लोगों को पश्चिमी शिक्षा और संस्कृति के द्वारा भारतीय लोगों को पश्चिमी शिक्षा के महत्व को बताना । इस अधिनियम के द्वारा ही भारत में स्थानीय सरकारों को व्यक्तियों के ऊपर कर ठोकने का कार्य किया गया कर का भुगतान न करने पर इन्हें धन की भी व्यवस्था की गई
1833 का चार्टर अधिनियम
स्थाई सदस्य एवं मंत्री(3)+(1) अस्थाई विधि सदस्य एवं मंत्री लॉर्ड मेकाले को इसका श्रेय (विधि वेता के रूप में)जाता हैं।
अन्य प्रावधान
सपरिंषद गवर्नर जनरल का मुख्य कार्य अब कानून बनाना हो गया उसे समूचे ब्रिटिश भारत के लिए कानून बनाना था ताकि स्थानीय कानूनों के कारण पैदा हुई विसंगति को दूर किया जा सके और ब्रिटिश प्रांतों में कानूनों और न्याय प्रशासन में एकरूपता लाई जा सके।
ब्रिटिश प्रांतों से कानून बनाने का अधिकार लेकर इसे सपरिंषद गवर्नर में केंद्रीत कर दिया गया ।इसलिए बंगाल के गवर्नर जनरल का दर्जा बढ़ाकर अब ब्रिटिश भारत का गवर्नर जनरल कर दिया गया भारत के प्रथम गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक को बनाया गया।
दंड संघीता में एकरुपकता लाने के कारण मैंकालो के अध्यक्षता में एक विधि आयोग का गठन (1835)किया गया( यह भारत का प्रथम विधि आयोग था)
इसी आयोग ने दंड विधान को संहिताबद्ध किया, जिसे भारतीय दंड संहिता के नाम से जाना जाता है अर्थात अब एक अपराध के लिए एक ही सजा की व्यवस्था की गई।1680 में लॉर्ड कैनिंग के समय वायसराय कार्यकारी परिषद में इसे पारित कर दिया 1862 में लागू हो गया जो आज तक चला आ रहा है।
सिविल सेवकों में बदलाव करते हुए लॉर्ड विलियम बेंटिक की सरकार ने इस एक्ट के अंतर्गत मंडल आयुक्तों की नियुक्ति की और जिला कलेक्टर को इसके अधीन कर दिया
ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार पूरी तरह समाप्त कर दिया और इसे न्यास बना दिया
इसके अंतर्गत आगरा को एक नया प्रेसिडेंसी बनाया गया
चार्टर एक्ट 1833 सिविल सेवकों के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया हालांकि कोर्ट ऑफ डायरेक्टर ( कंपनी की गवर्निंग बॉडी )के विरोध के कारण इस प्रावधान को समाप्त कर दिया।
अधिनियम के पहले कानूनों को विनायक कानून कहा जाता था इसके बाद के कानूनों को एक्ट या अधिनियम कहा जाने लगा ।
इसमें कहा गया कि कंपनी के अधीन कोई पद धारण करने के लिए उसके धर्म, रंग ,जन्मस्थान ,के आधार पर रोजगार को हासिल करने में वंचित नहीं किया जाएगा लेकिन बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के विरोध के कारण इसे समाप्त कर दिया गया।
1853 का चार्टर अधिनियम
1793 से लेकर 1853 तक कि चार्टर एक्ट की श्रृंखला में यह अंतिम चार्टर एक्ट है।
विशेषताएं
इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल की परिषद विधायीऔर प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया साथ ही इस परिषद के अंदर 6 नए पार्षद और जोड़ दिए गए जिसे विधान परिषद के नाम से जाना गया।लेकिन ये अतिरिक्त (विधान पार्षद) सदस्य मनोनित थे।इस एक्ट के द्वारा ही भारत में संसद का लघु स्वरूप हमें देखने को मिलता है इस संसद के वही प्रक्रिया अपनाई जाती थी जो ब्रिटिश संसद के अंदर अपनाई जाती थी.
इस एक्ट के अंतर्गत लॉर्ड मैंकालो की अध्यक्षता में सिविल सेवा सुधार समिति का गठन (1854 ) हुआ ।इस समिति ने ही प्रविंदाविद सिविल सेवकों की भर्ती खुली प्रतियोगिता के आधार पर करने का सुझाव दिया।
सिविल सेवा<[प्रसविंदाविद (राजपत्रित अधिकारी मतलब कॉन्ट्रैक्ट बेस)]
अप्रसविंदाविद सेवक (अराजपत्रित अधिकारी)
सिविल सेवा का जनक लॉर्ड कार्नवालिस को बोला जाता है।
1854 से लेकर 1891 तक सिविल सेवा को इंप्रीरियल सिविल सेवा (ICS) कहते थे।
इस एक्ट के द्वारा ही कंपनी के शासन को विस्तारित किया गया और भारतीय क्षेत्र को इंग्लैंड राजशाही के विश्वास के रूप में कब्जे में रखने का अधिकार दिया इस एक्ट के बाद यह स्पष्ट दिखाई देने लगा था कि ब्रिटिश संसद के द्वारा कभी भी कंपनी के शासन को समाप्त किया जा सकता है इस एक्ट के द्वारा ही प्रथम बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारंभ किया गया
Regulating act 1773
Act or settlement 1781
पिंटस इंडिया एक्ट 1784
1786 का एक्ट
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