अनुच्छेद 17 (Article 17 in Hindi)-अस्पृश्यता का अंत-अनुच्छेद 18 (article 18 in Hindi) उपाधियों का अंत
अनुच्छेद 17 (Article 17 in Hindi) – अस्पृश्यता का अंत, के महत्व का वर्णन करते हुए सविधान के जानकर M.V पायली ने लिखा है ,।
” यह सत्य है कि छुआछूत की समाप्ति द्वारा विशेष अधिकार की व्याख्या नहीं की गई है फिर भी इस अनुच्छेद के परिणाम स्वरुप भारतीय जनता के लगभग छठे भाग को एक दलित अवस्था से मुक्ति हुई है।
अस्पृश्यता क्या है? (What is Untouchability)
भारतीय संविधान मे की कोई व्याख्या नही दी हुई है और नही संसद द्वारा पारित किसी अधिनियम मे दी गई है इस शब्द का अर्थ सर्वविदित है। किन्तु मैसूर उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में इसके अर्थ को स्पष्ट किया है। न्यायालय ने कहा है कि
“इस शब्द का शाब्दिक अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिये। शाब्दिक अर्थ में व्यक्तियों को कई कारणों से अस्पृश्य माना जा सकता है; जैसे-जन्म, रोग, मृत्यु एवं अन्य कारणों से उत्पन्न अस्पृश्यता। इसका अर्थ उन सामाजिक कुरीतियों से समझना चाहिये जो भारतवर्ष में जाति-प्रथा के सन्दर्भ में परम्परा से विकसित हुई हैं। अनुच्छेद 17 इसी सामाजिक बुराई का निवारण करता है जो जाति-प्रथा की देन है न कि शाब्दिक अस्पृश्यता का।”
अनुच्छेद 17 (Article 17 in Hindi)-अस्पृश्यता का अंत
अनुच्छेद 17 के अनुसार छुआछूत संबंधी कोई भी भेदभाव तथा किसी भी रूप में इसका आचरण दंडनीय होगा ,किंतु केवल इस उपबंध के द्वारा सामाजिक सोच में बदलाव लाना संभव नहीं है इसलिए इसे दंडनीय बनाने के लिए राज्य की सहायता की आवश्यकता है। मौलिक अधिकारों में इसे शामिल कर समाज के कमजोर वर्गों ,दलित व शोषित वर्गों को कानून के सामने बराबरी का दावा करने का और न्यायलय के माध्यम से इसकी स्थापना करने का अवसर दिया गया है।
1976 में, 1955 में संसद द्वारा पारित अस्पृश्यता अपराध अधिनियम को सख्त बनाते हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने निम्नलिखित तीन दंड विधान को शामिल किया।
1. अनुसूचित जाति के किसी सदस्य को उसकी जातिसूचक पदों का प्रयोग कर उसका अपमान करना दंडनीय बना दिया गया
2. अस्पृश्यता को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रति प्रोत्साहित करना या उसका प्रचार प्रसार करना दंडनीय बना दिया गया
3. ऐतिहासिक दार्शनिक अथवा धार्मिक आधार पर अस्पृश्यता को उचित ठहराना दंडनीय होगा।
किसी एक्ट के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को अस्पृश्यता पर आचरण के कारण किसी व्यक्ति को दंडित किया जाता है तो उसे सामान्य दंड के अतिरिक्त एक से दो की अतिरिक्त सजा दी जा सकती है साथ ही अस्पृश्यता के आधार पर दंडित व्यक्ति को चुनाव लड़ने से भी रोका जा सकता है।
सन् 1989 में राजीव गांधी की सरकार ने अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति अत्याचार( निषेध)एक्ट पारित करवाकर इसे और कड़ा बना दिया इसके अंतर्गत आरोपी व्यक्ति को खुद को निर्दोष सिद्ध करना होगा और आरोप के बाद तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है और बिना जमानत के मुकदमा चलाया जा सकता है ।(यह संघेय अपराध माना जाता है।)
अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की पीट ने ए.के. गोयल व यू. यू. ललित की पीठ ने महाराष्ट्र तकनीकी शिक्षक निर्देशक प्रकाश महाजन की याचिका पर इस एक्ट को लागू करने के लिए दो दिशा निर्देश दिए हैं ।
1. यदि किसी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी के विरुद्ध इस एक्ट की किसी भी धारा के अंतर्गत कोई आरोप लगाया जाता है तो आरोपी व्यक्ति के विभागाध्यक्ष या वरिष्ठ की सहमति से ही उसके विरूद्ध मुकदमा दर्ज किया जाए।
2. यदि किसी क्षेत्र में कार्यरत किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई आरोप लगता (संबंधित एक्ट के किसी धारा के अंतर्गत) तो इस मामले में उस व्यक्ति के गिरफ्तारी के पूर्व संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से अनुमति ली जाए, इन आरोपों की जांच उपाध्यक्ष स्तर के अधिकारी से करवाई जाए।
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अनुच्छेद 18(article 18 in Hindi) उपाधियों का अंत
इस संबंध में निम्नलिखित बात ध्यान देने योग्य है ।
1. यह प्रतिबंध के केवल राज्यों पर लागू होता है।
2. यह प्रतिबंध कुछ लोग संस्थाओं जैसे विश्वविद्यालय प्रतिभा के आधार पर अपने शिक्षकों वह अपने विद्यार्थियों को कोई उपाधि देने से नहीं रुकता साथ ही सेना को अपने अधिकारियों और सिपाहियों को उनके उत्कृष्ट कार्यों हेतु किसी उपाधि देने से नहीं रोकता है।
सेवानिवृत्ति के पश्चात भी अकादमिक व सैनिक उपाधियों का प्रयोग किया जा सकता है उदाहरण के लिए प्रोफेसर , जनरल आदि।
ऐसे विदेशी जो भारत में किसी सरकार के अधीन कार्य करते हैं वह कोई भी उपाधि धारण तभी कर सकते हैं जब उन्होंने भारत के राष्ट्रपति से पूर्व अनुमति प्राप्त कर ली हालांकि भारतीय लोगों का यह मुख्य रूप से नागरिकों को कोई भी विदेशी उपाधि धारण करने से मनाही है।
सरकार सामाजिक सेवा के लिए लोगों (देसी व विदेशी )को कुछ उपाधियों से सम्मानित कर सकती है किंतु यह लोग (यदि वे भारतीय नागरिक हैं ।)इस उपाधि का प्रयोग अपने नाम के साथ नहीं करते हैं कर सकते हैं।
उपाधि जो किसी व्यक्ति को विशेष अधिकार प्रदान करता है वह पूरी तरह निषेद है ।कोई भारतीय किसी विदेशी उपाधि के आधार पर अथवा अंग्रेजो के द्वारा दी गई उपाधि के आधार पर भारत में किसी विशेष अधिकार को प्राप्त करना चाहता है। तो वह न केवल निषिद्ध है बल्कि दंडनीय भी है
यदि कोई भारतीय नागरिक जान बूझकर कोई उपाधि धारण करता है तो उसे क्या दंड दिया जा सकता है
डॉक्टर अंबेडकर के अनुसार इस संबंध में कानून बनाने का अधिकार संसद को होना चाहिए संसद इस कानून के द्वारा ऐसे नागरिकों को दंडित करने की व्यवस्था कर सकती है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के अनुसार इसमें एक प्रमुख दंड यह हो सकता है उस व्यक्ति की नागरिकता समाप्त कर दी जाए।
इस संबंध में वर्तमान स्थिति यह है कि राष्ट्रपति को जो कि भारत का प्रथम नागरिक भी है यह निर्धारित करने का अधिकार है कि वह ऐसे नागरिकों को जो किसी उपाधि का उपयोग करते हैं या अपने नाम से पहले या अपने नाम के बाद उनकी नागरिकता जारी रखी जाए या उसे समाप्त कर दी जाए हालांकि संसद ने इस संबंध में कोई स्पष्ट कानून नहीं बनाया है किंतु नागरिकता अधिनियम 1955 इस संबंध में कार्यपालिका को यह अधिकार प्रदान है कि वह स्वविवेक से यह तय कर सकती है कि नागरिकता की शर्तों का उल्लंघन होने पर किन-किन व्यक्तियों की भारतीय नागरिकता वापस ली जाए।
अनुच्छेद 18 में दी गई व्यवस्था के बावजूद भारत में, भारत रतन, पद्म भूषण, पद्मश्री आदि उपाधि प्रदान की जा रही है जिनकी कई लोगों के द्वारा आलोचना भी की गई है जैसे सन 1970 में अचार्य कृपलानी ने इन उपाधियों को समाप्त करने के लिए लोकसभा में एक बिल पेश किया लेकिन यह बिल पास नहीं हो सका लेकिन सन 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो महान्यायवादी ने सरकार को यह परामर्श दिया कि यह उपाधियां अनुच्छेद 18 के शब्दों तथा भावना के अनुरूप नहीं है। अतः जुलाई 1977 में संसद द्वारा एक कानून पास किया गया और इन उपाधियों को समाप्त कर दिया गया परंतु सन 1980 में जब देश की राजनीति में पुनः परिवर्तन हुआ और कांग्रेस की सरकार बनी तो इन उपाधियों को दोबारा मान्यता प्रदान कर दी गई और यह निर्णय लिया गया कि भविष्य में भी उपाधियां प्रदान की जाएगी यहां यह उल्लेखनीय है कि यह पुरस्कार उपाधि नहीं है इनको व्यक्ति के नाम के साथ उपाधि के रूप में प्रयोग करने की कानूनी मनाही है।
आपको यहां यह समझने की आवश्यकता है की उपाधि और पुरस्कार दोनों अलग-अलग हैं उपाधि जैसे सर ,राय बहादुर, राय साहब, खान सा जो ब्रिटिश शासन काल में प्रदान की जाती थी लेकिन पुरस्कार के अंतर्गत जैसे भारत रतन पद्मभूषण पद्मश्री यह पुरस्कार हैं जो भारत सरकार द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
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