व्यक्ति की उन्नति और विकास के लिए मौलिक अधिकारों का बहुत महत्व है। यदि व्यक्ति को मौलिक अधिकार न प्रदान किया जाए उसके जीवन , संपत्ति और स्वतंत्रता की रक्षा का कोई वजह नहीं है।इस लिए मौलिक अधिकार सरकार तथा विधानमंडल को तानाशाह बनने से रोकता है और व्यक्ति को आत्मविश्वास का अवसर प्रदान करता है। मौलिक अधिकारों का व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के संबंध में विशेष महत्व है।इस लेख में हम article 14 in Hindi and Article 15 in Hindi की विस्तार से अध्ययन करने वाले है
समानता का अधिकार अनुच्छेद 14 से 18
समानता का अधिकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों में से एक महत्वपूर्ण अधिकार है जो लोकतंत्र की आधारशिला अर्थात आगे आने वाले सभी मौलिक अधिकारों का आधार अनुच्छेद 14 से 18 को ही माना जाता है उनको ऐसा क्यों माना जाता है इसका वर्णन हम आगे पढ़ने वाले हैं।
Article 14 in Hindi And Article 15 in Hindi इन दोनों को इक साथ क्यों पढ़ रहे है इसका जवाब आपको पूरा लेख पड़ने पर मिल जाएगा
अनुच्छेद 14 (Article 14 in Hindi) – विधि के समक्ष समता
कानून के समक्ष समानता :-
संविधान के अनुच्छेद 14 (Article 14) के अनुसार भारत के राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
कानून(विधि) के समक्ष समानता/कानून के समान संरक्षण(Equality before law) :-विधि के समक्ष समता जो कि ब्रिटेन से लिया गया है।कानून की दृष्टि मैं सभी समान और किसी को कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है देश में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं।देश में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसका सामाजिक तथा आर्थिक स्तर कुछ भी हो, सावधान कानून के अधीन है, और उस पर साधारण न्यायालयो में भी मुकदमा चलाया जाएगा।
विधि का समान सरक्षण/समानता के अधिकार(Equal Protection of law):- जो कि अमेरिका संविधान से लिया गया है समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाए अर्थात इसमें कहा गया है किस समान स्थिति में लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाए और समान लोगों के ऊपर समान कानून लागू है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में इन दोनों उपवाक्य के बीच अंतर करते हुए विधि के समान संरक्षण की जांच के लिए दो मापदंड तय किए हैं ।
1. जिन लोगों को राज्य द्वारा विशेष सरंक्षण दिया जाना है, जैसे आरक्षण, ताकि वे इतने सक्षम हो सकें की वे कानून के समक्ष बराबरी सिद्ध कर सकें और न्याय पा सके लेकिन यह वर्गीकरण तार्किक हों (अर्थात यह सिद्ध किया जा सके कि सामाजिक ,शैक्षणिक तथा अन्य कारणों से वास्तव में उस वर्ग को सरंक्षण की जरूरत है।
2. इस वर्गीकरण के द्वारा राज्य जिन लक्ष्यो को प्राप्त करना चाहता है (जैसे सामाजिक न्याय )तो उस लक्ष्य से इस वर्गीकरण का सीधा संबंध होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने E.P. रॉयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य 1974 में कहा कि वास्तव में अनुच्छेद 14 राज्य के मनमाने पन का घोर विरोधी है न्यायालय के अनुसार वास्तव में समानता व स्वेच्छातारिता एक दूसरे के घोर शत्रु हैं।
जैसा कि ऊपर कहा गया है जब सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अथवा अन्य कारणों से( जैसे ऐतिहासिक और आर्थिक) यदि समाज के किसी कमजोर वर्ग को राज्य विशेष दर्जी के लिए अलग करती है तो यह वर्गीकरण उस वर्ग के सभी व्यक्तियों पर लागू होगा (उदाहरण के लिए यदि x जाति को कमजोर वर्ग माना जाता है तो राज्य की विशेष सहायता उस जाति के सभी व्यक्तियों को मिलेगी) सुप्रीम कोर्ट में यह व्यवस्था आंध्र प्रदेश राज्य बनाम N.R. रेडी 2001 के मुकदमे में व्यक्त की थी।
जस्टिस विवियन बोस के विचारो के अनुसार राम सिंह बनाम दिल्ली राज्य 1951 में अनुच्छेद 14 की व्याख्या करते हुए कहा कि राज्य के द्वारा की गई कोई भी कार्यवाही तभी इस उपबंध का सम्मान करती हुई मानी जाएगी जब वह निम्नलिखित तीन शर्तों को पूरा करें।
1. उस की कार्यवाही निष्पक्ष हो
2. 2. तार्किक हो
3. 3. भेदभाव पर आधारित न हो ,अर्थात धर्म, प्रजाति, जाति, लिंग, जन्म स्थान ,मूल वंश, निवास आदि के स्थान पर राज्य को एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति के बीच कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए ।
अनुच्छेद 14 के अंतर्गत वर्णित समानता के अधिकार के निम्नलिखित अपवाद है ।
अनुच्छेद 361(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति या राज्यो के राज्यपाल अपने किसी निर्णय या कार्यों के लिए किसी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं है।
अनुच्छेद 365 (2) के अंतर्गत राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल के विरुद्ध उनके पद धारण के समय कोई अपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
अनुच्छेद 361(3)के अंतर्गत दीवानी मामले में राष्ट्रपति या राज्यपाल के विरुद्ध उनके पद धारण के दौरान उन पर कोई मुकदमा तभी चलाया जा सकता है जब 60 दिन पूर्व इस आशय का नोटिस उन्हे दे दिया गया हो( इस दीवानी मुकदमे में केवल अर्थदंड की सजा हो सकती है इसे अपराधिक मुकदमा नहीं माना जाएगा)
विदेशों से भारत आए राजनेयिक, विशेष दूत ,विशेष प्रतिनिधि, उनके साथ आए उनके परिवार जन ,शिष्टमंडल आदि।
इनको वियना अधिकार 1961,1963 अंतर्गत किसी देश के आपराधिक या दीवानी मुकदमे से पूरी तरह सुरक्षा प्राप्त होते हैं। हालांकि अमेरिका जैसे कुछ देशों में अपराधिक मामलों में घरेलू कानूनों को इन अभिसारो के ऊपर रखा है किंतु भारत में ऐसा नही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ और इससे जुड़ी हुई एजेंसियां में कार्यरत लोगों को राजनैयिक की भांति घरेलू कानूनों से सुरक्षा प्राप्त है।
अनुच्छेद 105 के अंतर्गत संसद सदस्यों को संसद के भीतर कहीं गई किसी भी बात के लिए किसी न्यायालय में जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है इसी प्रकार की छुट अनुच्छेद 194 के अंतर्गत राज्य विधान मंडल के सदस्यों की है वास्तव में यह उनके विशेषाधिकार है ।
अनुच्छेद 31 (c) के अंतर्गत यदि राज्य कुछ नीति निर्देशक तत्वों को कानून करता है और इससे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है तो फिर राज्य की कार्यवाही उचित मानी जाएगी उदाहरण के लिए अधिक आय अर्जित करने वाले लोगों से अधिक आय कर लेना यह अनुच्छेद 14 का उलंघन नहीं माना जाता
इस लेख में हम article 14 in Hindi and Article 15 in Hindi की विस्तार से अध्ययन करने वाले है जिसमे Article 14 in Hindi And Article 15 in Hindi जो की सभी एग्जाम के लिए बहुत महत्पूर्ण है आर्टिकल 14 को हमने ऊपर विस्तार से अध्ययन किया है अब हम आर्टिकल 15 के बारे में जानेगे
अनुच्छेद 15 (Article 15 )धर्म नस्ल जाति लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव की मनाही।
इस अनुच्छेद के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि राज्य किसी नागरिक के साथ उसके धर्म जाति, प्रजाति ,लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा इनमें से किसी के आधार पर किसी व्यक्ति को दुकानों ,होटलों, कुआं, तालाबों ,स्नान ग्रह तथा मनोरंजन के अन्य स्थानों पर प्रवेश करने का किसी प्रकार की रुकावट नहीं होगी।
भारत संविधान में मूल अधिकार के रूप में आर्टिकल 15 पर एक फिल्म भी बनाई जा चुकी है जिसमें समाज के सबसे निचले स्तर पर माने जाने वाले अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के ऊपर होने वाले अत्याचारों को दिखाया गया है इस फिल्म के अंदर बंदायू के कटरा सहादतगंज गांव में दो दलित चचेरी बहनों की मौत की गुत्थी सुलझाने के ऊपर तथा उन्नाव कांड में दलितों की पिटाई को दिखाया गया है इस फिल्म में हमें भीम आर्मी को भी देखने को मिलता है।
अनुच्छेद 15 (1 ) किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक स्थान पर उसकी धर्म , जाति,प्रजाति, जन्मस्थान, लिंग के आधार पर भेदभाव से मनाही है।
अनुच्छेद 15 (2) धर्म, जाती, प्रजाति ,लिंग ,जन्म स्थान के आधार पर निम्नलिखित स्थानों पर भेदभाव से मनाही है ।
1 . दुकाने लोक रेस्टोरेंट ,होटल व मनोरंजन।
2. जलाशय, कुएं ,स्नानागार ,सड़क इत्यादि।
अनुच्छेद 15( 3 )महिलाओं व बच्चों के लिए विशेष उपबंध राज्य कर सकता है।
अनुच्छेद 15 (4) सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों व अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को विशेष तर्जी दी जा सकती है।
अनुच्छेद 15(5) इसे भारतीय संविधान में 93 वे संविधान( संशोधन) अधिनियम , 2005 को जोड़ा गया इसमें
1 . ओबीसी ( OBC) के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान है। (SC/ST के अतिरिक्त)
2. निजी (गैर सहायता प्राप्त )शिक्षण संस्थानों में समाज के कमजोर वर्गों के लिए कुछ सीटों का आरक्षण।
जाति आधारित भेदभाव के अंत के लिए राज्य सरकार द्वारा किए गए प्रयास निम्नलिखित है
अनुच्छेद 15 के तीन अपवाद [15(1),(2),(3)] वास्तव में सक्षमकारी उपबंद है। अर्थात् राज्य को समाज के कमजोर वर्गों के साथ खड़ा होने के लिए अवसर प्रदान करते हैं इसी का प्रयोग करते हुए संसद ने 1995 में अस्पृश्यता (अपराध )अधिनियम, 1955 पारित किया ताकि अस्पृश्यता जो कि धर्म से प्रेरित है को सार्वजनिक स्थल पर भेदभाव से रोका जा सके।
सनी सिगड़ा देव मंदिर (मुंबई )में हाजी अली दरगाह मुंबई महिलाओं का प्रवेश इसी का विस्तार हैं ।
महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए राज्य ने कई विधान किया है जिसे
2006 में घरेलू हिंसा के बचाव के लिए महिलाओं के पक्ष में कानून बनाया।
1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया ।
1995 में बीजिंग घोषणा पत्र के अनुसार भारत सरकार ने महिलाओं के संरक्षण व उत्थान के कई उपाय किए।
सुप्रीम कोर्ट ने सन 1997 विशाखा वाद में कार्यस्थल पर महिलाओं के सुरक्षा के लिए कई दिशा निर्देश दिए।
वर्ष 2006 में बच्चों के अधिकार के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया ।
2012 में पॉक्सो अधिनियम के माध्यम से बच्चों को यौन हिंसा व लैगिंग भेदभाव के विरुद्ध संरक्षण दिया गया।
अनुच्छेद 15 के अपवादो को क्रियान्वित करते हुए राज्य में समाज में व्याप्त गैर बराबरी को दूर करने का प्रयास किया है ।
अनुच्छेद 15 (4) के अंतर्गत समाज के शैक्षणिक व सामाजिक रुप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण देना अनिवार्य नहीं है यह राज्य के विवेक पर निर्भर है इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट राज्य के विरुद्ध कोई प्रलेख जारी नहीं कर सकता।
वेंकटरमन बनाम मद्रास राज्य नामक मुकदमे का निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास सरकार से उस आदेश को अवैध घोषित करके रद्द कर दिया था, जिसके अनुसार मद्रास सरकार ने कॉलेजों में दाखिले के लिए न केवल हरिजनों के लिए बल्कि ब्राह्मणों ,मुसलमानों तथा ईसाइयों के लिए भी स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था की थी।
यदि सरकार स्त्रियों, बच्चों व पिछड़ी हुई जातियों के सदस्यों के लिए कोई विशेष नियम बनाती है तो वह इस अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं होगा उदाहरण के लिए सरकार किसी सार्वजनिक पार्क ,स्नान गृह, अथवा किसी अन्य स्थान को केवल स्त्रियों और बच्चों के लिए ही आरक्षित कर सकती हैं।
तो आपको Article 14 in Hindi And Article 15 in Hindiकी जानकारी कैसी लगी नीचे कमेंट करके जरूर बताएं। इसमे मैने Article 14 in Hindi And Article 15 in Hindi अगर इससे संबंधित कोई प्रश्न हो तो आप नीचे कमेंट करके पूछ सकते है, बाकी पोस्ट को शेयर जरूर करें।
अधिक जानकारी के आप आर्टिकल 17 and 18 को विस्तार से पढ सकते हो
article 14 in Hindi and Article 15 in Hindi की विस्तार से अध्ययन किया है आगे के लेख में हम आर्टिकल 16 को पड़ेगे