भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन की शुरुआत 15 वी शताब्दी के अंत में होती है।आज आपको इसी लेख में कंपनियों के आगमन से लेकर जाने तक को पुरे विस्तार के साथ पढ़ने वाले है। भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन से पहले भी भारत में यूरोप से विदेशियों का आना जाना प्राचीन काल से ही हो रहा था। यहाँ की व्यापारिक सम्पदा से आकर्षित होकर समय-समय पर अनेक यूरोपीय जातियों का आगमन होता रहा। लेकिन इसकी मुख्तय शुरुआत 1498 में जब पुर्तगाल के एक व्यक्ति के द्वारा भारत के समुंदर मार्ग की खोज की जाती है। इसी समुन्दर की खोज के बाद एक के बाद एक विदेशी कंपनी भारत के अंदर आने की शुरुआत हो जाती है।
हमे भारत के इतिहास को समझने के लिए बहुत जरूरी है की हमे भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन की जानकारी भी होनी बहुत जरूरी है। क्युकी यही वही कंपनी होगी जो आगे चलकर भारत के ऊपर अपना नियतंर स्थापित करके भारत पर राज करने वाली है। यही वह समय था जब विश्व में पुनःजागरण की शुरुआत होती ,नए नए अविष्कार होते है। इसी के साथ ही नए देशो की भी खोज की जाती है। जिसमे सबसे पहले हम बात करते है कोलम्बस जोकि स्पेन का नागरिक था।लेकिन भारत के समुद्री मार्ग की खोज में निकला और चलकर अमेरिका पहुँच गया।
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन का सही कर्म क्या है
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन तथा स्थापना का कर्म दोनों ही अलग अलग है। जैसे की अगर हम बात करे की ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 के अंदर की जाती है। लेकिन अंग्रेज भारत के अंदर 1608 के अंदर आते है। पुर्तगाली 1498 को भारत के अंदर आते है। लेकिन इसकी कंपनी की स्थापना भी 1498 में अस्तादो द इंडिया के नाम से की जाती है।
आगमन- पुर्तगाली 1498 – स्थापना -अस्तादो द इंडिया (पुर्तगाल कंपनी 1498 )
आगमन -डच 1605 – वेरिगंदे ओसत इंडीसे कंपनी (डच ईस्ट इंडिया कंपनी 1602 )
आगमन- अंग्रेज 1608 – (ब्रिटिश इंडिया कंपनी 1600 )
आगमन- डेनिश 1620 – डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1616
आगमन- फ़्रांसिसी 1668 – कंपने देस एंडेस ओरियंटलेस ( फ़्रांसिसी कंपनी 1664 )
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन की पहली फैक्ट्री
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन के प्रमुख कारण क्या रहे
भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन के अगर हम कारणों की बात करे तो इसके बहुत से कारण रहे है जिसे की आप निचे बहुत ही आसान भाषा में समझ सकते है।
पहला कारण –मसाला का व्यापार -इन कंपनियों के भारत में आने से पहले भी भारत का यूरोप के देशो के साथ मसाला का व्यपार किया जाता राहा है।लेकिन जब 1453 में उस्मानिया सल्तनत का कुतुस्तुनिया व एशिया माइनर पर कब्ज़ा जिस से मसाला व्यापर अवरुद व अरबी नियत्रण हुआ। क्योंकी पुर्तगालो से पहले भारत के केरल में अरब व्यपारियो के द्वारा मसाला का व्यपार किया जाता है। यूरोप में पुनःजागरण शुरू होता है। ऐसी में बहुत सारे मानवतावाद की शुरुआत होती है। नए नए वैज्ञानिक अविष्कार भी होते है।तथा धर्म सुधार भी हमे दिखाई देते है। लेकिन –
वैज्ञानिक अविष्कार के अंदर नविन मार्गो की खोज होने लगी थी जैसे ब्राजील की खोज पुर्तगाल के कैब्रिल के द्वारा की जाती है। 1492 में अमेरिका की खोज कोलम्बस( स्पेन) के द्वारा की जाती है। भारत की खोज 1498 में वास्कोडिगामा के द्वारा की जाती है। ऑस्ट्रेलिया की खोज कूक ब्रिटेन का था। न्यूजीलैंड व तस्मानिया की खोज हॉलेंड के तस्मान के द्वारा की जाती जाती है।
पुर्तगाल (1498 -1961 )की शुरुआत
पहले भारत व यूरोप के देशो के साथ जो व्यपार होता था वो केवल जमीनी रास्ते से होता था। लेकिन जब 1453 में उस्मानिया सल्तनत ने कुतुस्तुनिया व एशिया माइनर पर कब्ज़ा कर लिया जिस से मसालो का व्यापर अवरुद व अरबी नियत्रण हुआ। इसी के साथ ही अब भारत व यूरोप के जमीनी रास्ते से व्यापर न होकर समुंद्री मार्गो की खोज का सिलसिला शुरू होता है। इन्ही खोजो में सबसे पहले पुर्तगाल व स्पेन के द्वारा इसकी शुरुआत की जाती है।
पुर्तगाल में इसकी शुरुआत क्यों हुई इसका भी इक मुख्य कारण यह रहा की उस समय यूरोप में पुनःजागरण की शुरुआत होती है और साथ में कुछ अविष्कार भी होते है जैसे की compus की खोज हो गई जिस से अब समुंद्री खोजो को और भी आसान बना दिया गया
पुर्तगाल राजकुमार हेनरी द नविगेटर जिसे की नई खोजो में बहुत ही रूचि लेता था। और व उन सभी को मदद करता जो की नई खोज करना चाहते थे तथा साथ में उन नाविकों को भी बहुत पैसा देता जो अलग अलग जगह जा कर व्यपार करना चाहते है। इसी को ध्यान में रखते हुए हेनरी द नविगेटर ने भारत की खोज करने के लिए 1487 में बर्थोलम्यो डियाज को भेजा लेकिन उसन साउथ अफ्रीका का सबसे अंतिम बिंदु केप ऑफ़ गुड हॉप की खोज कर दी। और केप ऑफ़ गुड हॉप से ही वह वापिस पुर्तगाल चला गया।
लेकिन हेनरी द नविगेटर फिर से भारत की खोज करने के लिए 1497 में वास्कोडिगामा को भेजता है। 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा केप ऑफ़ गुड हॉप (साउथ अफ्रीका का साउथ का अंतिम हिस्सा )होते हुए साओ ग्रैबियल नामक जहाज से एक गुजरती यात्री अहमद इबन मजीदी की सहायता से कालीकट बंदरगाह पर पहुँचता है।जहा पर ज़मोरियन के द्वारा उसका स्वागत किया जाता है।
लेकिन जब वास्कोडिगामा भारत में केरल में पहुंचता है. तब उसका सामना अरब के व्यापारियों के साथ होता है उस समय केरल में मसालों का व्यापार अरब के व्यापारियों के द्वारा किया जाता है और यही अरब की व्यापारी यहां से मसाला को लेकर कुस्तुनिया लेकर आते थे और यहीं से इटली के व्यापारी उस मसाला को पूरे यूरोप के अंदर व्यापार करते थे। वास्कोडिगामा को भारत के केरल में पहुंचने अरब के व्यापारियों को बहुत दिक्कत है होने लगी और इसी के चलते बहुत-बहुत पुर्तगालियों में व अरब के व्यापारियों के साथ युद्ध होने लगते हैं।
वास्कोडिगामा 1498 को वापस इसी रास्ते अपने देश पुर्तगाल लौट जाता है इसी के साथ कहा जाता है कि जब वास्कोडिगामा भारत से मसालों को लेकर अपने देश पुर्तगाल पहुंचता है तो उसे उस मसाले से 60 गुना अधिक लाभ होता है. इसके बाद धीरे धीरे पुर्तगालियों ने भारत में आना आरम्भ कर दिया था । भारत में कालीकट, दमन,दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में पुर्तगालियों ने अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना की । भारत में द्वितीय पुर्तगाली स्थापना अभियान 09 मार्च, 1500 को 13 जहाज़ों के एक बेड़े का नायक बनकर ‘पेड्रों अल्वारेज केब्राल’ जलमार्ग द्वारा लिस्बन से भारत के लिए रवाना हुआ. कैब्राल ने कालीकट बंदरगाह में एक अरबी जहाज को पकड़कर जमोरिन को उपहारस्वरूप भेट किया इसी के साथ ही वास्कोडिगामा भारत के अंदर दोबारा से 1502 में आता है.वास्कोडिगामा के दूसरी भारत भारत आने के अगले वर्ष ही 1503 के अंदर कोचीन में पुर्तगालियों की पहली फैक्ट्री स्थापित की जाती है वास्कोडिगामा भारत के अंदर एक या दो बार नहीं बल्कि 3 बार आता है और हर बार वह भारत के मसालों को लेकर अपने देश लौट जाता है लेकिन जब यह तीसरी बार 1524 के अंदर भारत में आता है तब इसकी मृत्यु दिसंबर 1524 को कोचीन केरल के अंदर हो जाती है
पुर्तगालियों के प्रमुख गवर्नर
वास्कोडिगामा भारत के अंदर मसाला के व्यापार के लिए आता है और केरल में इसका सामना अरब के व्यापारियों के साथ होता है इसी के साथ ही पुर्तगालियों तथा अरब के व्यापारियों के साथ कुछ युद्ध भी होते हैं तथा जो 1503 के अंदर कोचिंग में पुर्तगालियों की पहली फैक्ट्री स्थापित की जाती है तो इसके साथ ही पुर्तगाल से नियंत्रण स्थापित करने के लिए समय-समय पर गवर्नर स्थापित किया जाते हैं। 1505 में फ्रांसिस्को डी अल्मोड़ा को भारत में पहला पुर्तगाली गवर्नर बन कर आता है. अल्मोड़ा ही पुर्तगालियों का वह गवर्नर था जिसने शांत जल की निति या नीले पानी की नीति (Blue Water Policy) को अपनाई जिसके तहत समुद्र से व्यापार करने के लिए पुर्तगालियों से आज्ञा (Permission) लेनी पड़ती थी | इसे कार्टाज सिस्टम भी कहा जाता था |यही सिस्टम आगे चलकर पुर्तगालियों के पतन का कारण भी बनता है।
अल्फांसो डी अल्बूकर्क को दूसरा गवर्नर बनाकर भारत भेजा जाता है.अल्फांसो डी अल्बूकर्क कोई भारत में वास्तविक पुर्तगालि शक्तियों का संस्थापक माना जाता है क्योंकि इसने ही होमुर्ज को 1515 में ,मलंका को 1511 में तथा बीजापुर शासक युसूफशाह से 1510 में गोवा को जीत लिया जाता है। सन् 1510 में पुर्तगालियों ने गोवा पर अपना अधिकार कर लिया जाता है, तथा उसे अपना प्रशासनिक केंद्र बनाया । ये घटना जमोरिन को पसन्द नहीं आई और वो पुर्तगालियों के खिलाफ हो गया। 1510 में कालीकट के शासक जमोरिन का महल लूट लिया।लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि उसने कोचिंग को अपना मुख्य केंद्र बनाया था। अल्बूकर्क ही पहला ऐसा गवर्नर था जिसने सती प्रथा का विरोध किया था तथा उसने भारतीय महिलाओं से शादी करने की नीति भी अपनाई थी.
अल्बूकर्क के बाद नीनो डी कुन्हा को अगला गवर्नर बनाया जाता है.ऐसी ने सबसे पहले गोवा को अपनी राजधानी बनाता है। बेसिन व द्वीप पर भी कर लेता है। ऐसी के गुजरात के शासक बहादुर शाह की मृत्यु हो जाती है।
1560 में मार्टिन अल्फांसो डिसूजा को भारत का गवर्नर बनाकर भेजा जाता है। इसके साथ ही ईसाई संत फ्रांसिस्को जेवियर मैं भारत में आते हैं.जेवियर ने हीं गोवा के स्थानीय लोगों तथा मछुआरों को ईसाई धर्म बनाने के लिए प्रेरित किया था और इन्हीं को भारत की प्रथम चर्च पादरी बनाया गया था
पुर्तगालियों का भारत में योगदान क्या क्या है।
हम सभी जानते हैं कि पुर्तगाली भारत के अंदर व्यापार करने के लिए आए थे जिन्होंने मसाला का व्यापार से लेकर भारत में अपना राज्य स्थापित करने तक कार्य किया लेकिन इसके साथ उन्होंने भारत को ऐसी बहुत सी चीजें विधि जोकि शायद इससे पहले भारत के अंदर नहीं पाई जाती थी
- फसल- तंबाकू काजू बादाम कॉफी लाल मिर्च पपीता मक्का टमाटर अमरूद अनानास
- 1556 के अंदर गोवा में पहली प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना पुर्तगालियों के द्वारा ही की गई थी
- जहाज बनाने की कला
- पुर्तगालियों ने ही ईसाई धर्म का विस्तार करने के लिए भारत में 1510 के अंदर सेंट थॉमस नाम कि चर्च को केरल के अंदर स्थापित की जाती हैं। इस चर्च के बनने के साथ ही भारत में गोथिक स्थापत्य कला की शुरुआत होती है।